पंच पदे पदे साईं
गुरूर ब्रम्हा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः , गुरुः साक्छात पर ब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः
श्री साईं बाबा : - श्री अतुरु साईं बाबा इस पुण्य भूमि पर सन १८३८ से १९१८ पर्यंत ८० वर्ष की कल मर्यादा में हिन्दू – मुसलमानों तथा एनी धर्मो के असंख्य अव लोगो को सन्मार्ग की और प्रवित्त करने का श्री साईं महाराज का कार्य निशंदेह पुन्यता भगीरथ के पवित्र अविरत प्रवाह की बहती ही सतत,अद्भुत और रहस्यमय से चलता रहा.श्री साईं नाथ एक अवतारी पुरुष थे.उनका से कहा हुआ,उनके परम पूज्य माता पिता कौन थे थे और उनकी जनम की जाती और धर्म क्या था आदि प्रशन आज भी अगम्य बने हुए है इसलिए उनका पवित्र जीवन चित्र तथा उनकी लीलाये अत्यन्त ह्रदय स्पर्शी और मन को बरबस मोहित करनी वाली बनी हुई है.
श्री साईं बाबा की लीलाओ तथा उनकी अद्भुत शक्ति का यदि तादस्थ पवित्र भावः से मनन,अध्ययन किया जाए तो अन्तः करण में यह भावना उत्पन्न होती है की श्री साईं बाबा एक महान अवतारी पुरूष थे.यध्यपि उन्होंने सधे गुरु हाथ से पार्थिव शरीर का सन १९१८ में तय किया तथापित भावुक भक्तो के लिए वे आज भी अजर – अमर है.वे आज भी अपने भक्तो को स्वप्न में या जागृत अवस्था में प्रत्यक्छ दर्शन देते हुए प्रतीत होते है.समाधी स्थल पर उनकी दिव्या अस्थिया आज इसी चाँद भी प्रेमी भक्तो के कण में मंजुल नाद करती प्रतीत होती है.यही कारन है की आज भी सभी दीशाओ से हजारो लोग शिर्डी छेत्र की यात्रा के लिए आते है.यह श्री साईं बाब की दिव्य विभूति का ही चमत्कार और साक्छात्कार है.
श्री साईं बाबा की लीलाओ तथा उनकी अद्भुत शक्ति का यदि तादस्थ पवित्र भावः से मनन,अध्ययन किया जाए तो अन्तः करण में यह भावना उत्पन्न होती है की श्री साईं बाबा एक महान अवतारी पुरूष थे.यध्यपि उन्होंने सधे गुरु हाथ से पार्थिव शरीर का सन १९१८ में तय किया तथापित भावुक भक्तो के लिए वे आज भी अजर – अमर है.वे आज भी अपने भक्तो को स्वप्न में या जागृत अवस्था में प्रत्यक्छ दर्शन देते हुए प्रतीत होते है.समाधी स्थल पर उनकी दिव्या अस्थिया आज इसी चाँद भी प्रेमी भक्तो के कण में मंजुल नाद करती प्रतीत होती है.यही कारन है की आज भी सभी दीशाओ से हजारो लोग शिर्डी छेत्र की यात्रा के लिए आते है.यह श्री साईं बाब की दिव्य विभूति का ही चमत्कार और साक्छात्कार है.